दुर्गा कवच: माँ दुर्गा की अदृश्य ढाल आपके लिए

Nikhil

October 16, 2025

माँ दुर्गा सिंह पर विराजमान, दिव्य आभा और तेजस्वी कवच से युक्त — दुर्गा कवच का प्रतीक।

क्या आप अपने जीवन में ऐसी परिस्थितियों का सामना कर रहे हैं जहाँ भय, चिंता और अनिश्चितता आपके मन पर भारी पड़ती हैं? क्या आपको लगता है कि नकारात्मक ऊर्जा, दुर्भाग्य या शत्रु आपका पीछा नहीं छोड़ रहे हैं? यदि हाँ, तो जान लें कि आप अकेले नहीं हैं। प्रत्येक व्यक्ति कभी न कभी ऐसी दिव्य सुरक्षा की खोज में रहता है जो उसे जीवन की कठिनाइयों से मुक्त कर सके।

कल्पना कीजिए एक अदृश्य ढाल की, जो न केवल बाहरी खतरों से बल्कि आपके भीतर के भय और तनाव से भी आपकी सुरक्षा करे। सनातन धर्म के महान ग्रंथों में इसका विवरण एक अद्भुत उपाय के रूप में मिलता है—दुर्गा कवच (Durga Kavach)। यह केवल एक स्तोत्र नहीं है, बल्कि माँ दुर्गा की नौ शक्तियों का जीवंत आवरण है, जो साधक को पूर्ण और अभेद्य सुरक्षा प्रदान करता है।

इस लेख में हम दुर्गा कवच के रहस्यमय और दिव्य संसार में गहराई से प्रवेश करेंगे। हम समझेंगे:

  • इसके प्रत्येक श्लोक का सरल और स्पष्ट हिंदी अर्थ।
  • इसका सही पाठ कैसे किया जाए।
  • इसके पाठ से मिलने वाले चमत्कारिक लाभ।
  • और कैसे यह आपके जीवन में सकारात्मक परिवर्तन और सुरक्षा ला सकता है।

आइए, माँ भगवती की इस दिव्य ऊर्जा को जानें और उसे अपने जीवन में आत्मसात करने की यात्रा प्रारंभ करें।

दुर्गा कवच का दिव्य सुरक्षा रहस्य:

दुर्गा कवच, जिसे “अथ देव्याः कवचम्” या “चंडी कवच” के नाम से भी जाना जाता है, मार्कण्डेय पुराण का एक महत्वपूर्ण अंग है और दुर्गा सप्तशती के पाठ से पूर्व इसका वाचन किया जाता है।

‘कवच’ शब्द का अर्थ होता है — रक्षा करने वाला आवरण या ढाल। जैसे एक योद्धा युद्ध के समय लौह कवच धारण कर अपने शरीर की रक्षा करता है, उसी प्रकार देवी कवच का पाठ साधक के चारों ओर एक अदृश्य, आध्यात्मिक एवं ऊर्जामय सुरक्षा कवच का निर्माण करता है।

यह कवच स्वयं भगवान ब्रह्मा द्वारा ऋषि मार्कण्डेय को प्रदान किया गया एक परम गोपनीय और पवित्र ज्ञान है। जब ऋषि मार्कण्डेय ने ब्रह्माजी से यह प्रश्न किया कि मनुष्य को सभी प्रकार के संकटों, भय, और बाधाओं से मुक्ति दिलाने का उपाय क्या है, तब ब्रह्माजी ने उन्हें देवी कवच का उपदेश दिया।

यह कवच माँ दुर्गा के नौ दिव्य रूपोंनवदुर्गा — का आह्वान करता है, और उनसे प्रार्थना करता है कि वे साधक के शरीर, मन, और आत्मा — तीनों की समग्र रक्षा करें।

दुर्गा कवच कैसे कार्य करता है?

प्राचीन शास्त्रों में कहा गया है कि मंत्रों में ध्वनि और कंपन की अलौकिक शक्ति निहित होती है। जब साधक श्रद्धापूर्वक देवी कवच का पाठ करता है, तो इन श्लोकों से उत्पन्न दिव्य स्पंदन उसके चारों ओर सकारात्मक ऊर्जा का क्षेत्र (Protective Energy Field) निर्मित करते हैं।

यह ऊर्जा किसी भी प्रकार की नकारात्मकता, शत्रुता, अदृश्य बाधा या ग्रहों के अशुभ प्रभावों को निष्प्रभावी करने में समर्थ होती है। इस प्रकार, देवी कवच न केवल बाहरी खतरों से रक्षा करता है, बल्कि आंतरिक भय, असुरक्षा और अशांति को भी दूर कर आत्मबल और आत्मविश्वास का संचार करता है।

दुर्गा कवच में वर्णित नवदुर्गा: आपकी नौ दिव्य रक्षक

दुर्गा कवच की दिव्यता का मूल आधार हैं — नवदुर्गा, माँ भगवती के नौ परम पूजनीय और शक्तिशाली स्वरूप। ये सभी देवियाँ साधक के जीवन के नौ भिन्न पहलुओं की रक्षा करती हैं और उसके चारों ओर एक अभेद्य आध्यात्मिक सुरक्षा चक्र का निर्माण करती हैं।

  • शैलपुत्री – पर्वतराज हिमालय की पुत्री, स्थिरता, धैर्य और दृढ़ संकल्प की प्रतीक।
  • ब्रह्मचारिणी – तपस्या, वैराग्य और आत्म-नियंत्रण की मूर्ति, जो साधक को आंतरिक बल और ज्ञान प्रदान करती हैं।
  • चंद्रघंटा – मस्तक पर घंटे के आकार का अर्धचंद्र धारण करने वाली, जो वीरता, निर्भयता और संतुलन का वरदान देती हैं।
  • कूष्मांडा – सम्पूर्ण ब्रह्मांड की सृजिका, जिनकी मुस्कान से अंधकार मिटता है और सृष्टि में ऊर्जा का संचार होता है।
  • स्कंदमाता – भगवान कार्तिकेय की माता, मातृत्व, करुणा और समर्पण की साकार अभिव्यक्ति।
  • कात्यायनी – महिषासुर का संहार करने वाली धर्मसंस्थापिका, जो न्याय, शक्ति और विजय की अधिष्ठात्री हैं।
  • कालरात्रि – भय, अंधकार और नकारात्मक शक्तियों का विनाश करने वाली, जो साधक को हर प्रकार के संकट से मुक्त करती हैं।
  • महागौरी – निर्मलता, शांति और पवित्रता की देवी, जो पापों का नाश कर आत्मा को दिव्यता की ओर ले जाती हैं।
  • सिद्धिदात्री – सभी सिद्धियों और दिव्य शक्तियों की दात्री, जो साधक को पूर्णता, सफलता और मोक्ष का आशीर्वाद देती हैं।

इन नौ रूपों की संयुक्त शक्ति से निर्मित देवी कवच, साधक के शरीर, मन और आत्मा — तीनों की रक्षा करता है। यह एक ऐसा दिव्य सुरक्षा चक्र है जिसे कोई भी नकारात्मक शक्ति भेद नहीं सकती।

दुर्गा कवच पाठ के अद्भुत और चमत्कारी लाभ:

दुर्गा कवच का नियमित और श्रद्धापूर्वक पाठ साधक को अनंत दिव्य फल प्रदान करता है। यह केवल आध्यात्मिक सुरक्षा का साधन नहीं, बल्कि जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में सकारात्मक परिवर्तन का स्रोत है। माँ भगवती की कृपा से यह पाठ साधक के चारों ओर एक अदृश्य दिव्य ऊर्जा कवच रचता है, जो उसे भय, नकारात्मकता और विपरीत परिस्थितियों से संरक्षित रखता है, साथ ही मन, बुद्धि और आत्मा को संतुलित कर जीवन में शांति, समृद्धि और आत्मबल का संचार करता है।

1. हर प्रकार के भय से मुक्ति:

चाहे वह मृत्यु का भय हो, शत्रुओं का भय हो या भविष्य की अनिश्चितता का संकट, देवी कवच का श्रद्धापूर्वक पाठ साधक के अंतःकरण से सभी भय का नाश करता है। माँ दुर्गा की कृपा से साधक में निर्भयता, साहस और आत्मविश्वास का संचार होता है, जिससे वह जीवन की प्रत्येक चुनौती का सामना दृढ़ता और शांति के साथ कर पाता है।

2. नकारात्मक ऊर्जा और दुष्ट शक्तियों से सुरक्षा:

यह कवच साधक को हर प्रकार की नकारात्मकता से रक्षा प्रदान करता है। यह जादू-टोना, बुरी दृष्टि, अभिचार कर्म (ब्लैक मैजिक) और अदृश्य दुष्ट शक्तियों के प्रभाव को निष्प्रभावी कर देता है। माँ दुर्गा की दिव्य शक्ति से यह कवच एक अभेद्य ऊर्जा कवच के रूप में कार्य करता है, जो साधक के चारों ओर सतत दिव्य संरक्षण का वलय निर्मित करता है।

3. शत्रुओं पर विजय:

जो साधक विरोधियों, विवादों या कठिन परिस्थितियों से घिरा होता है, उसके लिए चंडी कवच का पाठ अत्यंत प्रभावी सिद्ध होता है। माँ दुर्गा की कृपा से शत्रुओं की शक्तियाँ स्वतः ही निष्प्रभावी हो जाती हैं और साधक धर्म, सत्य तथा न्याय के मार्ग पर विजय प्राप्त करता है। यह कवच साधक को आत्मबल, साहस और रणनीतिक स्पष्टता प्रदान कर विजयी बनाता है।

4. शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य की प्राप्ति:

कवच के नियमित पाठ से उत्पन्न दिव्य कंपन शरीर और मन दोनों को संतुलित करते हैं। यह सकारात्मक ऊर्जा शारीरिक रोगों को दूर कर जीवनशक्ति को पुनः स्थापित करती है तथा मानसिक स्तर पर शांति, स्थिरता और प्रसन्नता का अनुभव कराती है। माँ दुर्गा की कृपा से यह पाठ अवसाद, चिंता और तनाव जैसे मानसिक विकारों को शमन कर साधक में नई ऊर्जा और आंतरिक संतुलन का संचार करता है।

5. ग्रह दोषों से सुरक्षा:

जब किसी व्यक्ति की कुंडली में ग्रह अशुभ फल प्रदान करते हैं, तब जीवन में अवरोध, मानसिक अशांति या असफलता के रूप में उनके दुष्प्रभाव दिखाई देते हैं। ऐसे समय में दुर्गा कवच का श्रद्धापूर्वक पाठ एक दिव्य ढाल का कार्य करता है। यह न केवल ग्रहों के अशुभ प्रभावों को शांत करता है, बल्कि साधक के चारों ओर एक अदृश्य आध्यात्मिक सुरक्षा कवच रचता है, जिससे जीवन में संतुलन, शांति और सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह बना रहता है।

6. धन, यश और समृद्धि की प्राप्ति:

जो साधक निष्ठा और भक्ति से देवी कवच का पाठ करता है, उस पर माँ भगवती अपनी असीम कृपा बरसाती हैं। उनकी कृपा से जीवन में धन, यश, कीर्ति और सम्मान का निरंतर प्रवाह बना रहता है। माँ की दिव्य शक्ति साधक के जीवन से अभावों को दूर कर, उसे समृद्धि, संतोष और आत्मविश्वास का आशीर्वाद प्रदान करती है।

7. आध्यात्मिक उन्नति का मार्ग:

जो साधक श्रद्धा और भक्ति से दुर्गा कवच का पाठ करता है, उसकी अंतःचेतना धीरे-धीरे जागृत होने लगती है। माँ भगवती की कृपा से उसका मन शुद्ध होता है, विचार दिव्यता से परिपूर्ण होते हैं और वह आत्म-साक्षात्कार की दिव्य यात्रा पर अग्रसर होता है। यह पाठ साधक को भौतिक सीमाओं से ऊपर उठाकर आध्यात्मिक आलोक में विलीन कर देता है।

8. अकाल मृत्यु से दिव्य रक्षा:

शास्त्रों में वर्णन मिलता है कि जो साधक दुर्गा कवच का आश्रय लेता है, वह माँ भगवती की दिव्य कृपा से हर प्रकार के भय और अकाल मृत्यु से सुरक्षित रहता है। देवी का यह पवित्र कवच उसके चारों ओर अदृश्य सुरक्षा-वलय रच देता है, जिससे जीवन में संकट आते हुए भी उसे स्पर्श नहीं कर पाते। ऐसी दिव्य शक्ति के प्रभाव से साधक दीर्घायु, स्वस्थ और सुखमय जीवन का आशीर्वाद प्राप्त करता है।

दुर्गा कवच — संपूर्ण पाठ (अर्थ सहित):

यहाँ प्रस्तुत है श्री दुर्गा कवच का सम्पूर्ण संस्कृत पाठ उसके सरल एवं भावपूर्ण हिंदी अर्थ सहित, जिससे हर साधक माँ भगवती के दिव्य शब्दों का अर्थ समझकर उन्हें हृदय में धारण कर सके। इस पाठ के माध्यम से आप केवल श्लोकों का उच्चारण ही नहीं, बल्कि उनके पीछे छिपे गूढ़ आध्यात्मिक भावों का भी अनुभव कर सकेंगे, जो आत्मा को शांति और शक्ति दोनों प्रदान करते हैं।

।। श्रीदुर्गायै नमः ।।

अथ देव्याः कवचम् ।

ॐ अस्य श्रीचण्डीकवचस्य ब्रह्मा ऋषिः, अनुष्टुप छन्दः, चामुण्डा देवता, अङ्गन्यासोक्तमातरो बीजम्, दिग्बन्धदेवतास्तत्त्वम्, श्रीजगदम्बाप्रीत्यर्थ सप्तशतीपाठाङ्गत्वेन जपे विनियोगः ।

अर्थ: इस पवित्र श्री चण्डी कवच के ऋषि स्वयं ब्रह्मा हैं, जो सृष्टि के आदि ज्ञाता माने जाते हैं। इसका छंद अनुष्टुप है, जो दिव्य लय और संतुलन का प्रतीक है। चामुंडा देवी इस स्तोत्र की अधिष्ठात्री देवता हैं, जिनकी कृपा से साधक निर्भय और विजयी बनता है।

अंगन्यास में जिन मातृ शक्तियों का आह्वान किया जाता है, वे इस कवच का बीज स्वरूप हैं, और दिग्बंध देवता इसकी रक्षा-संरचना के तत्त्व हैं।

यह कवच श्री जगदंबा की प्रसन्नता और आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए श्री दुर्गा सप्तशती पाठ के अंग के रूप में विशेष रूप से जपा जाता है। जो भक्त श्रद्धा और निष्ठा से इसका विनियोग करता है, वह देवी की असीम करुणा और दिव्य संरक्षण से कृतार्थ होता है।

ॐ नमश्चण्डिकायै ।

मार्कण्डेय उवाच ।

ॐ यद्‌गुह्यं परमं लोके सर्वरक्षाकरं नृणाम् । यन्न कस्यचिदाख्यातं तन्मे ब्रूहि पितामह ।।1 ।।

अर्थ: ॐ — देवी चंडिका को नमस्कार।
ऋषि मार्कंडेय विनम्र भाव से ब्रह्माजी से प्रार्थना करते हैं —
“हे पितामह! कृपा कर वह परम गूढ़ और दिव्य रहस्य मुझे बताइए, जो इस संसार में मनुष्य की हर प्रकार से रक्षा करने में समर्थ है। ऐसा रहस्य, जिसे आपने अब तक किसी और को प्रकट नहीं किया है।”

यह श्लोक साधक के भीतर श्रद्धा और जिज्ञासा दोनों का संचार करता है — जैसे आत्मा देवी के दिव्य संरक्षण के रहस्य को सुनने को व्याकुल हो।

अस्ति गुह्यतमं विप्र सर्वभूतोपकारकम् । देव्यास्तु कवचं पुण्यं तच्छृणुष्व महामुने ।।2 ।।

अर्थ: ब्रह्मदेव मुस्कराते हुए ऋषि मार्कंडेय से कहते हैं —
“हे ब्राह्मणश्रेष्ठ! यह एक अत्यंत गूढ़ और पवित्र साधन है, जो समस्त प्राणियों के कल्याण का कारण बनता है। यह है माँ भगवती का दिव्य कवच, जो भक्त की हर दिशा से रक्षा करता है। हे महामुने! श्रद्धापूर्वक इसे सुनो, क्योंकि इसके श्रवण मात्र से ही जीवन में पवित्रता, शक्ति और देवी की कृपा का संचार होता है।”

प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी । तृतीयं चन्द्रघण्टेति कूष्माण्डेति चतुर्थकम् ।।3 ।।

अर्थ: अब ब्रह्मदेव देवी के नव दिव्य स्वरूपों का वर्णन करते हैं, जिन्हें संसार “नवदुर्गा” के रूप में पूजता है। पहला स्वरूप है शैलपुत्री, जो स्थिरता, श्रद्धा और आरंभ की देवी हैं। दूसरा रूप है ब्रह्मचारिणी, जो तप, संयम और ज्ञान की अधिष्ठात्री हैं।

तीसरा रूप है चंद्रघंटा, जिनकी करुणामयी घंटाध्वनि से समस्त भय का नाश होता है। और चौथा स्वरूप है कूष्मांडा, जिनकी दिव्य मुस्कान से ब्रह्मांड की सृष्टि का आरंभ होता है। इन चारों रूपों की उपासना साधक के जीवन में शांति, शक्ति और सृजन का दिव्य संतुलन स्थापित करती है।

पञ्चमं स्कन्दमातेति षष्ठं कात्यायनीति च । सप्तमं कालरात्रीति महागौरीति चाष्टमम् ।।4 ।।

अर्थ: ब्रह्मदेव आगे कहते हैं — पाँचवाँ स्वरूप है स्कंदमाता, जो मातृत्व की करुणा और असीम ममता की प्रतिमूर्ति हैं; उनके सान्निध्य में भक्त को दिव्य शांति और सुरक्षा की अनुभूति होती है। छठा रूप है कात्यायनी, जो धर्म की रक्षा और अधर्म के विनाश के लिए प्रकट होती हैं; वे साहस, न्याय और धर्मबल की प्रतीक हैं।

सातवाँ स्वरूप है कालरात्रि, जो अंधकार को चीरकर प्रकाश का मार्ग प्रशस्त करती हैं; उनका रूप भयंकर होते हुए भी कृपालु और मुक्तिदायी है। आठवाँ रूप है महागौरी, जो पवित्रता, निर्मलता और मोक्ष की देवी हैं; उनके दर्शन से आत्मा निष्कलंक बन जाती है।

इन स्वरूपों की आराधना से साधक भय, अज्ञान और पाप के बंधनों से मुक्त होकर ज्ञान, बल और करुणा के मार्ग पर अग्रसर होता है।

नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गाः प्रकीर्तिताः । उक्तान्येतानि नामानि ब्रह्मणैव महात्मना ।।5।।

अर्थ: ब्रह्मदेव अंत में कहते हैं — नवम स्वरूप हैं सिद्धिदात्री देवी, जो सभी सिद्धियों और आध्यात्मिक पूर्णता की अधिष्ठात्री हैं। उनकी कृपा से साधक को अलौकिक शक्तियाँ, ज्ञान और आत्मसाक्षात्कार की अनुभूति प्राप्त होती है।

इन नौ रूपों को सामूहिक रूप से “नवदुर्गा” कहा गया है —
ये वही दिव्य शक्तियाँ हैं जिनका वर्णन स्वयं ब्रह्माजी ने किया है।
इनके नामों का स्मरण मात्र ही साधक के भीतर दिव्य ऊर्जा का संचार करता है और जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में विजय, कल्याण और आध्यात्मिक उन्नति का मार्ग प्रशस्त करता है।

अग्निना दह्यमानस्तु शत्रुमध्ये गतो रणे । विषमे दुर्गमे चैव भयार्ताः शरणं गताः ।।6।।

अर्थ: जब जीवन की रणभूमि में साधक चारों ओर से संकटों से घिर जाता है — कभी प्रचंड अग्नि की ज्वालाओं में जलने की स्थिति में, कभी शत्रुओं से वेष्टित युद्धभूमि में, या फिर किसी दुर्गम, अंधकारमय मार्ग पर भय से व्याकुल होकर — तब ऐसे असहाय क्षणों में जो भक्त माँ दुर्गा की शरण में जाता है, वह उनकी करुणा से सुरक्षित हो जाता है।

देवी का स्मरण उस अग्नि में अमृत जैसा शीतल प्रभाव देता है, और उनके नाम का जप साधक के चारों ओर अदृश्य सुरक्षा कवच रच देता है।

न तेषां जायते किंचिदशुभं रणसंकटे । नापदं तस्य पश्यामि शोकदुःखभयं न हि ।।7।।

अर्थ: जो साधक संकट की घड़ी में माँ दुर्गा की शरण लेता है, उसके जीवन में कोई अनिष्ट घटित नहीं होता। युद्ध हो या विपत्ति, वह सदा देवी की कृपा से सुरक्षित रहता है। माँ का कवच उसके चारों ओर ऐसा दिव्य वलय बना देता है जहाँ शोक, दुःख और भय का कोई प्रवेश नहीं होता।

देवी की करुणा से उसका मन निर्भय, स्थिर और आलोकित बना रहता है — जैसे अंधकार के बीच माँ का नाम एक उज्ज्वल दीपक बनकर उसकी राह प्रकाशित कर देता है।

यैस्तु भक्त्या स्मृता नूनं तेषां वृद्धिः प्रजायते । ये त्वां स्मरन्ति देवेशि रक्षसे तान्न संशयः ।।8 ।।

अर्थ: हे देवेश्वरी माँ दुर्गा! जो भक्त तुम्हारा सच्ची श्रद्धा और प्रेम से स्मरण करते हैं, उनका जीवन हर दिशा में उन्नति और मंगल से भर जाता है। माँ, तुम्हारे नाम का स्मरण ही साधक के लिए शक्ति, सफलता और शांति का स्रोत बन जाता है। जो तुम्हें मन, वचन और कर्म से याद करता है — तुम स्वयं उसकी रक्षा करती हो, इसमें तनिक भी संदेह नहीं।

माँ की भक्ति से जीवन में जो स्थिरता, समृद्धि और निर्भयता आती है, वह साधक को सांसारिक बंधनों से मुक्त कर दिव्यता के पथ पर अग्रसर करती है।

यैस्तु भक्त्या स्मृता नूनं तेषां वृद्धिः प्रजायते । ये त्वां स्मरन्ति देवेशि रक्षसे तान्न संशयः ।।8 ।।

अर्थ: हे जगज्जननी, देवेश्वरी माँ दुर्गा!
जो भक्त तुम्हारा सच्चे हृदय से, गहन श्रद्धा और निष्कपट भक्ति के साथ स्मरण करते हैं, उनके जीवन में समृद्धि, सौभाग्य और मंगल की वृद्धि निश्चित होती है। हे माँ, जो तुम्हारे नाम का ध्यान करते हैं — तुम स्वयं उनके रक्षक बन जाती हो, उनके चारों ओर अपनी करुणा और शक्ति का अदृश्य कवच रच देती हो।

तेरा स्मरण ही माँ, साधक के जीवन में आशा की ज्योति प्रज्वलित करता है, और तेरा आशीर्वाद उसके प्रत्येक कदम को दिव्यता की ओर अग्रसर करता है।

प्रेतसंस्था तु चामुण्डा वाराही महिषासना । ऐन्द्री गजसमारूढा वैष्णवी गरुडासना ||9 ।।
माहेश्वरी वृषारूढा कौमारी शिखिवाहना । लक्ष्मीः पद्मासना देवी पद्महस्ता हरिप्रिया ।। 10 ।।
श्वेतरूपधरा देवी ईश्वरी वृषवाहना। ब्राह्मी हंससमारूढा सर्वाभरणभूषिता ।।11।।
इत्येता मातरः सर्वाः सर्वयोगसमन्विता । नानाभरणशोभाढ्या नानारत्नोपशोभिताः ।।12।।

अर्थ: यहाँ माँ के आठ दिव्य स्वरूपों का अद्भुत वर्णन किया गया है — प्रेत पर आरूढ़ चामुंडा, जो मृत्युभय का नाश करती हैं; महिषासुर पर विराजमान वाराही, जो अधर्म का विनाश करती हैं; ऐरावत पर आरूढ़ ऐंद्री, जो इंद्रशक्ति का तेज धारण करती हैं; और गरुड़ वाहनिनी वैष्णवी, जो धर्म की रक्षा के लिए सदैव तत्पर रहती हैं।

आगे आती हैं — वृषभ पर विराजमान माहेश्वरी, जो शिवशक्ति का तेज प्रकट करती हैं; मयूर वाहन वाली कौमारी, जो शौर्य और ज्ञान की अधिष्ठात्री हैं; कमलासन पर विराजमान हरिप्रिया लक्ष्मी, जिनके करकमलों में सृष्टि की समृद्धि और सौभाग्य बसता है; श्वेतवर्णा ईश्वरी, जो शुद्धता की प्रतीक हैं; और हंस वाहनिनी ब्राह्मी, जो वेदज्ञान की मूर्त स्वरूपा हैं, जो समस्त आभूषणों और रत्नों से अलंकृत होकर दिव्य सौंदर्य की ज्योति बिखेरती हैं।

ये सभी मातृशक्तियाँ विभिन्न योग शक्तियों से संपन्न हैं — इनके तेज, करुणा और शक्ति से सम्पूर्ण सृष्टि आलोकित होती है।

दृश्यन्ते रथमारूढा देव्यः क्रोधसमाकुलाः । शङ्ख चक्रं गदां शक्तिं हलं च मुसलायुधम् ।।13।।
खेटकं तोमरं चैव परशुं पाशमेव च। कुन्तायुधं त्रिशूलं च शार्ङ्गमायुधमुत्तमम् ।।14 ।।
दैत्यानां देहनाशाय भक्तानामभयाय च। धारयन्त्यायुधानीत्थं देवानां च हिताय वै ।।15।।

अर्थ: माँ के वे दिव्य रूप रथों पर आरूढ़ होकर प्रकट होते हैं, उनके नेत्रों में धर्मरक्षा का अग्नि-ज्वाल सा तेज झलकता है। क्रोध से नहीं, बल्कि अधर्म के विनाश के संकल्प से वे क्रोधसमाकुल दिखती हैं।

उनके हाथों में दिव्य शस्त्र सुशोभित हैं — शंख, जो धर्म का आह्वान करता है; चक्र, जो अज्ञान के अंधकार को चीर देता है; गदा और शक्ति, जो अधर्म का विनाश करती हैं; हल और मुसल, जो भूमि और मानवता की रक्षा का प्रतीक हैं।

इसी प्रकार देवी खड्ग, तोमर, परशु, पाश, कुंत, त्रिशूल और शारंग धनुष धारण करती हैं — ये सभी उनके दिव्य आयुध हैं, जो शक्ति, संतुलन और धर्म के प्रतीक हैं।

माँ इन शस्त्रों को धारण करती हैं — दैत्यों के विनाश हेतु, भक्तों को निर्भयता और सुरक्षा प्रदान करने के लिए, और देवताओं सहित सम्पूर्ण सृष्टि के कल्याण के लिए।

नमस्तेऽस्तु महारौद्रे महाघोरपराक्रमे । महाबले महोत्साहे महाभयविनाशिनि ।। 16 ।।

अर्थ: हे माँ! तुम्हें कोटि-कोटि नमन। तुम वह हो जो महारौद्र रूप में अधर्म का संहार करती हो, जिसके तेज से समस्त दिशाएँ प्रकाशमय हो उठती हैं। तुम्हारा पराक्रम महान, बल असीम और उत्साह अदम्य है। हे महाभयविनाशिनी माँ, तुम्हारे स्मरण मात्र से ही भय, पाप और अंधकार नष्ट हो जाते हैं।

तुम वह अग्निशिखा हो जो अन्याय को भस्म कर देती है, तुम वह करुणामयी शक्ति हो जो अपने भक्त को निर्भय बना देती है।

त्राहि मां देवि दुष्प्रेक्ष्ये शत्रूणां भयवर्धिनि । प्राच्यां रक्षतु मामैन्द्री आग्नेय्यामग्निदेवता ।।17 ।।
दक्षिणेऽवतु वाराही नैर्ऋत्यां खड्गधारिणी । प्रतीच्यां वारुणी रक्षेद् वायव्यां मृगवाहिनी ।। 18 ।।
उदीच्यां पातु कौमारी ऐशान्यां शूलधारिणी । ऊर्ध्वं ब्रह्माणि मे रक्षेदधस्ताद् वैष्णवी तथा ।।19 ।।

अर्थ: हे माँ अंबिके!
तुम वह हो जिनका रौद्र रूप शत्रुओं के हृदय में भय उत्पन्न करता है, और जिनका स्मरण ही भक्त के लिए अभेद्य कवच बन जाता है। मैं तुम्हारी शरण में हूँ — मुझे हर दिशा से सुरक्षित रखो, हे करुणामयी माता!

पूर्व दिशा में तेजस्विनी ऐंद्री देवी मेरी रक्षा करें, आग्नेय दिशा में प्रज्वलित तेज की अधिष्ठात्री अग्निदेवता मुझे सुरक्षित रखें। दक्षिण दिशा में बलप्रदायिनी वाराही देवी, और नैऋत्य दिशा में पराक्रमी खड्गधारिणी देवी मेरी रक्षा करें।

पश्चिम दिशा में शांति और जलतत्व की अधिष्ठात्री वारुणी देवी, वायव्य दिशा में कृपालु मृगवाहिनी देवी मुझे रक्षण दें। उत्तर दिशा में ज्ञान और तेज की मूर्त स्वरूपा कौमारी देवी, और ईशान कोण में रौद्ररूपिणी शूलधारिणी देवी सदैव मेरी रक्षा करें।

ऊर्ध्व दिशा में सृष्टि की जननी ब्रह्माणी देवी अपनी करुणा का आकाश मेरे ऊपर फैलाएँ, और अधो दिशा में पालनकर्त्री वैष्णवी देवी मुझे अपने प्रेमपूर्ण कवच से आवृत करें।

एवं दश दिशो रक्षेच्चामुण्डा शववाहना। जया मे चाग्रतः पातु विजया पातु पृष्ठतः ।। 20 ।।
अजिता वामपार्श्वे तु दक्षिणे चापराजिता । शिखामुद्योतिनी रक्षेदुमा मूर्ध्नि व्यवस्थिता ।।21 ।।
मालाधारी ललाटे च भ्रुवौ रक्षेद् यशस्विनी । त्रिनेत्रा च भ्रुव र्मध्ये यमघण्टा च नासिके ।।22 ।।
शङ्खिनी चक्षुषोर्मध्ये श्रोत्रयोद्वारवासिनी । कपोलौ कालिका रक्षेत्कर्णमूले तु शांकरी ।। 23 ।।
नासिकायां सुगन्धा च उत्तरोष्ठे च चर्चिका । अधरे चामृतकला जिह्वायां च सरस्वती ।।24।।

अर्थ: हे माँ चामुंडे! जो शव पर आरूढ़ होकर भी जीवन के हर भय को हर लेती हैं, आप मेरी रक्षा करें — दसों दिशाओं से, हर क्षण, हर सांस के साथ।

जया देवी सदैव मेरे अग्रभाग में रहें, और विजया देवी पीछे से मेरा रक्षण करें, ताकि मैं हर दिशा में विजय और सुरक्षा का अनुभव कर सकूँ।

अजिता देवी मेरे बाएँ पक्ष की रक्षक बनें, और अपराजिता देवी दाएँ ओर सदैव साथ रहें। उद्योतिनी देवी मेरी शिखा को तेजमय बनाए रखें, और उमा देवी, जो स्वयं शिवशक्ति हैं, मेरे मस्तक पर कृपा का वरदहस्त रखें।

मालाधारी देवी मेरे ललाट की रक्षा करें, यशस्विनी देवी भौंहों की शोभा और स्थिरता बनाए रखें। त्रिनेत्रा देवी भौंहों के मध्य में प्रकाश और ज्ञान का नेत्र बनें, और यमघण्टा देवी मेरी नासिका की रक्षा करें,ताकि जीवन में हर श्वास पवित्रता से परिपूर्ण हो।

शंखिनी देवी मेरी दोनों आँखों को दिव्य दृष्टि दें, द्वारवासिनी देवी कानों के द्वारों की रक्षा करें, कालिका देवी गालों पर तेज और तेजस्विता का आभास रखें, और शांकरी देवी कानों के मूल में करुणा और विवेक की ध्वनि बनकर विराजें।

सुगंधा देवी मेरी नासिका को दिव्य सुगंध से भर दें, चर्चिका देवी ऊपरी होंठ की रक्षा करें, अमृतकला देवी निचले होंठ पर मधुरता और स्नेह का स्पर्श दें, और सरस्वती देवी, जो वाणी की अधिष्ठात्री हैं, मेरी जिह्वा पर सदैव मधुर, सत्य और कल्याणकारी वचन प्रदान करें।

दन्तान् रक्षतु कौमारी कण्ठदेशे तु चण्डिका । घण्टिकां चित्रघण्टा च महामाया च तालुके ॥२५॥
कामाक्षी चिबुकं रक्षेद् वाचं मे सर्वमङ्गला । ग्रीवायां भद्रकाली च पृष्ठवंशे धनुर्धरी ।। 26 ।।
नीलग्रीवा बहिःकण्ठे नलिकां नलकूबरी । स्कन्धयोः ख‌ङ्गिनी रक्षेद् बाहू मे वज्रधारिणी ।। 27 ।।
हस्तयोर्दण्डिनी रक्षेदम्बिका चाङ्गुलीषु च । नखाञ्छूलेश्वरी रक्षेत्कुक्षौ रक्षेत्कुलेश्वरी ।। 28 ।।
स्तनौ रक्षेन्महादेवी मनः शोकविनाशिनी । हृदये ललिता देवी उदरे शूलधारिणी ।। 29।।

अर्थ: हे माँ! तुम्हारे अनंत स्वरूप साधक के शरीर के प्रत्येक अंग में प्रकाश और संरक्षण का कवच बनकर विराजमान हैं।

कौमारी देवी मेरे दाँतों की रक्षा करें, चण्डिका देवी मेरे कंठ को बल और मधुरता प्रदान करें, चित्रघण्टा देवी मेरी वाणी में दिव्य स्वर भरें, और महामाया देवी, जो समस्त ब्रह्मांड की आधारशक्ति हैं, मेरे तालु में अमृतसमान शक्ति का संचार करें।

कामाक्षी देवी मेरे ठोड़ी की रक्षा करें, सर्वमंगला देवी मेरी वाणी को पवित्र और मंगलमय बनाए रखें। भद्रकाली देवी मेरे गले की रक्षा करें, और धनुर्धरी देवी, जो पराक्रम की मूर्ति हैं, मेरी रीढ़ में बल, स्थिरता और साहस का संचार करें।

नीलग्रीवा देवी बाहरी कंठ को तेजस्विता प्रदान करें, नलकुबरी देवी भीतर की नलिका में प्राणशक्ति प्रवाहित रखें। खड्गिनी देवी मेरे कंधों की रक्षा करें, और वज्रधारिणी देवी मेरी भुजाओं को बल और पराक्रम से परिपूर्ण करें।

दण्डिनी देवी मेरे हाथों की रक्षा करें, अम्बिका देवी मेरी अंगुलियों में करुणा और सेवा का स्पर्श भरें, शूलेश्वरी देवी नाखूनों को दिव्य तेज से संरक्षित करें, और कुलेश्वरी देवी मेरे कूल्हों की रक्षा कर स्थिरता और संतुलन प्रदान करें।

महादेवी मेरे स्तनों की रक्षा करें, जो मातृत्व और करुणा का प्रतीक हैं, शोकविनाशिनी देवी मेरे मन से सभी दुःख और चिंता को हर लें, ललिता देवी मेरे हृदय को प्रेम, शांति और सौंदर्य से भर दें, और शूलधारिणी देवी मेरे उदर की रक्षा कर उसे पवित्रता और स्वास्थ्य से संपन्न करें।

नाभौ च कामिनी रक्षेद् गुह्यं गुह्येश्वरी तथा। पूतना कामिका मेढूं गुदे महिषवाहिनी ।। 30 ।।
कट्यां भगवती रक्षेज्जानुनी विन्ध्यवासिनी । जड्डे महाबला रक्षेत्सर्वकामप्रदायिनी ।। 31।।
गुल्फयोर्नारसिंही च पादपृष्ठे तु तैजसी । पादाङ्‌गुलीषु श्री रक्षेत्पादाधस्तलवासिनी ।।32।।
नखान् दंष्ट्राकराली च केशांश्चैवोर्ध्वकेशिनी । रोमकूपेषु कौबेरी त्वचं वागीश्वरी तथा ।। 33 ।।
रक्तमज्जावसामांसान्यस्थिमेदांसि पार्वती । अन्त्राणि कालरात्रिश्च पित्तं च मुकुटेश्वरी ।। 34 ।।

अर्थ: हे माँ! तुम्हारी करुणा और शक्ति साधक के शरीर के प्रत्येक अंग में व्याप्त होकर उसे दिव्य कवच से आच्छादित करती है।

कामिनी देवी मेरी नाभि की रक्षा करें, जहाँ से प्राणशक्ति का प्रवाह आरंभ होता है। गुह्येश्वरी देवी गुप्तांगों की मर्यादा और पवित्रता बनाए रखें। पूतना देवी और कामिका देवी जननेंद्रिय की रक्षा कर उसे शुद्ध ऊर्जा का स्रोत बनाएं, और महिषवाहिनी देवी गुदास्थान की रक्षा कर देह के संतुलन को बनाए रखें।

भगवती देवी कटि (कमर) की रक्षा करें, ताकि शरीर की स्थिरता सुदृढ़ रहे। विन्ध्यवासिनी देवी, जो पर्वतों की अधिष्ठात्री हैं, मेरे घुटनों को शक्ति और धैर्य प्रदान करें। महाबला देवी, जो सर्वकामप्रदायिनी हैं, मेरी पिंडलियों में निरंतर कर्मशक्ति का प्रवाह बनाए रखें।

नारसिंही देवी मेरे टखनों की रक्षा करें, तैजसी देवी पैरों के ऊपरी भाग को तेज और गति से संपन्न करें। श्री देवी मेरे पादांगुलियों की रक्षा करें — जो भक्ति और सेवा के मार्ग पर चलते हैं, और पादतलवासिनी देवी मेरे पैरों के तलवों में स्थिरता और पवित्रता का स्पर्श दें।

दंष्ट्राकराली देवी नाखूनों की रक्षा करें, ऊर्ध्वकेशिनी देवी केशों की शोभा और स्वास्थ्य की संरक्षक बनें। कौबेरी देवी रोमकूपों की रक्षा करें, और वागीश्वरी देवी मेरी त्वचा को तेज, सौंदर्य और सजीवता से परिपूर्ण करें।

पार्वती देवी मेरे रक्त, मांस, अस्थि, मज्जा, वसा और मेद — इन सब आंतरिक तत्त्वों की रक्षा करें, ताकि शरीर देवी-शक्ति का योग्य पात्र बना रहे। कालरात्रि देवी मेरी आतड़ियों की रक्षा करें, और मुकुटेश्वरी देवी मेरे पित्त का संतुलन बनाए रखें, जिससे तन और मन दोनों शांत, संयमित और ऊर्जावान बने रहें।

पद्मावती पद्मकोशे कफे चूडामणिस्तथा । ज्वालामुखी नखज्वालामभेद्या सर्वसंधिषु ।। 35 ।।
शुक्रं ब्रह्माणि मे रक्षेच्छायां छत्रेश्वरी तथा । अहंकारं मनो बुद्धिं रक्षेन्मे धर्मधारिणी ।।36 ।।
प्राणापानौ तथा व्यानमुदानं च समानकम् । वज्रहस्ता च मे रक्षेत्प्राणं कल्याणशोभना ।। 37 ।।
रसे रूपे च गन्धे च शब्दे स्पर्शे च योगिनी । सत्त्वं रजस्तमश्चैव रक्षेन्नारायणी सदा ।।38।।
आयू रक्षतु वाराही धर्म रक्षतु वैष्णवी । यशः कीर्ति च लक्ष्मीं च धनं विद्यां च चक्रिणी ।। 39 ।।

अर्थ: हे माँ! तुम्हारी करुणा न केवल शरीर, बल्कि मन, बुद्धि और आत्मा के प्रत्येक स्तर पर रक्षण करती है — तुम्हारा कवच भीतर से बाहर तक साधक को दिव्यता में लपेट देता है।

पद्मावती देवी मेरे शरीर में स्थित सभी पद्मकोशों (ऊर्जा केंद्रों) की रक्षा करें, ताकि मूलाधार से सहस्रार तक दिव्य शक्ति का प्रवाह अविरल बना रहे। चूडामणि देवी कफ तत्त्व की रक्षा करें, और ज्वालामुखी देवी नखों की आभा और जीवनज्योति को प्रज्वलित रखें। अभेद्या देवी मेरे शरीर के सभी जोड़ों को सुदृढ़ता और लचीलापन प्रदान करें।

ब्रह्माणी देवी मेरे शुक्रधातु की रक्षा करें, जिससे ओज और जीवनशक्ति बनी रहे। छत्रेश्वरी देवी मेरी आभा और देहकांति की रक्षा करें, और धर्मधारिणी देवी मेरे अहंकार, मन और बुद्धि को संतुलित रखें — ताकि मैं धर्ममार्ग से विचलित न होऊँ।

वज्रहस्ता देवी मेरे पंचप्राण — प्राण, अपान, व्यान, उदान और समान — इन सबकी रक्षा करें, और कल्याणशोभना देवी, जो मंगलमयी स्वरूपा हैं, मेरे जीवनश्वास को पवित्र और प्रसन्न बनाए रखें।

योगिनी देवी मेरी पाँचों इंद्रियों की रक्षा करें — रस, रूप, गंध, शब्द और स्पर्श में शुद्धता बनी रहे, ताकि मेरी इंद्रियाँ भी साधना का माध्यम बन जाएँ। नारायणी देवी, मेरे भीतर के तीनों गुणों — सत्त्व, रज और तम — को संतुलित रखें, जिससे मेरा स्वभाव सदैव शांत, सजग और प्रकाशमय बना रहे।

वाराही देवी मेरी आयु की रक्षा करें, वैष्णवी देवी मेरे धर्म को स्थिर रखें, और चक्रिणी देवी मेरे जीवन को यश, कीर्ति, लक्ष्मी, धन और विद्या से सम्पन्न करें।

गोत्रमिन्द्राणि मे रक्षेत्पशून्मे रक्ष चण्डिके। पुत्रान् रक्षेन्महालक्ष्मीर्भार्या रक्षतु भैरवी ।।४० ।।
पन्थानं सुपथा रक्षेन्मार्ग क्षेमकरी तथा । राजद्वारे महालक्ष्मीर्विजया सर्वतः स्थिता ।।४१।।
रक्षाहीनं तु यत्स्थानं वर्जितं कवचेन तु । तत्सर्वं रक्ष मे देवि जयन्ती पापनाशिनी ।। ४२ ।।

अर्थ: हे माँ दुर्गे! तुम्हारा कवच केवल शरीर ही नहीं, बल्कि सम्पूर्ण जीवन का दिव्य संरक्षण है।

इन्द्राणी देवी मेरे कुल और गोत्र की रक्षा करें, ताकि मेरे वंश में सदा पुण्य, सद्गुण और गौरव बना रहे। चण्डिका देवी, जो अधर्म का संहार करती हैं, मेरे पशुधन और आजीविका की रक्षा करें, ताकि जीवन में कभी अभाव या विघ्न न आए। महालक्ष्मी देवी मेरे पुत्रों की रक्षा करें, उन्हें ज्ञान, स्वास्थ्य और सौभाग्य का वरदान दें। और भैरवी देवी, जो करुणा और शक्ति का संगम हैं, मेरी पत्नी की रक्षा करें, उसे मंगलमयी और तेजस्विनी बनाए रखें।

सुपथा देवी मेरे मार्गों को शुभ और सुरक्षित बनाए रखें,
क्षेमकरी देवी जीवन के हर पथ पर कल्याण और मंगल की छाया रखें। महालक्ष्मी देवी राजद्वार, अर्थात् सार्वजनिक जीवन में सम्मान, यश और समृद्धि की रक्षा करें। और विजया देवी, जो हर दिशा में विजयी स्वरूपा हैं, मुझे चारों ओर से अपने संरक्षण में रखें।

हे जयन्ती देवी, पापों का नाश करने वाली माँ, यदि कोई स्थान ऐसा रह गया हो जहाँ यह कवच मेरे रक्षण का उल्लेख नहीं करता, तो वहाँ भी आप स्वयं उपस्थित होकर मेरी पूर्ण रक्षा और कल्याण करें।

पदमेकं न गच्छेत्तु यदीच्छेच्छुभमात्मनः । कवचेनावृत्तो नित्यं यत्र यत्रैव गच्छति ।।४३।।

अर्थ: जो व्यक्ति अपने जीवन में मंगल, कल्याण और सुरक्षा की कामना करता है, उसे बिना दुर्गा कवच के संरक्षण के एक भी कदम आगे नहीं बढ़ाना चाहिए। यह कवच केवल शास्त्रीय अनुष्ठान नहीं, बल्कि माँ की कृपा से निर्मित दिव्य कवच है — जो साधक को हर दिशा, हर परिस्थिति और हर यात्रा में अदृश्य रूप से सुरक्षा, शक्ति और शांति प्रदान करता है।

तत्र तत्रार्थलाभश्च विजयः सार्वकामिकः । यं यं चिन्तयते कामं तं तं प्राप्नोति निश्चितम् । परमैश्वर्यमतुलं प्राप्स्यते भूतले पुमान् ।।४४।।

अर्थ: जो साधक श्रद्धा और निष्ठा से देवी कवच का पाठ करता है और सदैव स्वयं को माँ भगवती की कृपा से आवृत रखता है, उसके जीवन में जहाँ भी वह जाता है — वहाँ सफलता, समृद्धि और विजय उसका साथ देती हैं।

देवी की कृपा से वह व्यक्ति हर कार्य में अर्थलाभ, हर प्रयास में विजय और हर इच्छा में पूर्णता प्राप्त करता है। उसका मन जो भी सत्कामना करता है, माँ भगवती उसे उसी रूप में पूर्ण करती हैं।

निर्भयो जायते मर्त्यः संग्रामेष्वपराजितः । त्रैलोक्ये तु भवेत्पूज्यः कवचेनावृतः पुमान् ।।४५ ।।

अर्थ: जो मनुष्य सदैव दुर्गा कवच के दिव्य संरक्षण में रहता है, वह संसार के हर भय से मुक्त होकर पूर्णतः निर्भय बन जाता है। जीवन के रणभूमि समान संघर्षों में वह कभी पराजित नहीं होता। ऐसा साधक केवल सांसारिक विजय ही नहीं पाता, बल्कि त्रिलोक — स्वर्ग, पृथ्वी और पाताल — तीनों लोकों में आदर और पूजनीयता प्राप्त करता है।

इदं तु देव्याः कवचं देवानामपि दुर्लभम् । यः पठेत्प्रयतो नित्यं त्रिसन्ध्यं श्रद्धयान्वितः ।।४६ ।।
दैवी कला भवेत्तस्य त्रैलोक्येष्वपराजितः । जीवेद् वर्षशतं साग्रमपमृत्युविवर्जितः ।।४७ ।।

अर्थ: यह देवी कवच इतना पवित्र और शक्तिशाली है कि इसका ज्ञान स्वयं देवताओं के लिए भी दुर्लभ माना गया है।जो साधक पवित्र मन, पूर्ण श्रद्धा और नियमितता के साथ — प्रातः, मध्यान्ह और सायं तीनों संधियों में इसका पाठ करता है, उसके जीवन में देवी की दिव्य शक्ति स्थायी रूप से प्रवाहित होने लगती है।

ऐसे भक्त के भीतर दैवी कला, अर्थात् आध्यात्मिक तेज, ज्ञान, सौभाग्य और शक्ति का प्रकाश प्रकट होता है। वह त्रिलोक में अजेय और आदरणीय बन जाता है। उसका जीवन दीर्घ, शुभ और कल्याणमय होता है — वह अकाल मृत्यु से मुक्त होकर शतायु तक सुख, समृद्धि और शांति का अनुभव करता है।

नश्यन्ति व्याधयः सर्वे लूताविस्फोटकादयः । स्थावरं जङ्गमं चैव कृत्रिमं चापि यद्विषम् ।।४८।।

अर्थ: जो साधक श्रद्धा और निष्ठा के साथ देवी कवच का पाठ करता है, उसके जीवन से सभी प्रकार के रोग, व्याधियाँ (खरूज, फोड़े-फुंसी, त्वचा के विकार) और कष्ट समाप्त हो जाते हैं।

देवी का यह कवच केवल आध्यात्मिक सुरक्षा ही नहीं, बल्कि शरीर, मन और प्राण — तीनों की चिकित्सक शक्ति है। इसकी प्रभाव से स्थावर विष (जैसे पौधों या जड़ी-बूटियों से उत्पन्न),
जंगम विष (जैसे सर्प, बिच्छू आदि जीवों से उत्पन्न) या कृत्रिम विष (रसायन या दुष्ट संयोगों से उत्पन्न) — कोई भी विष साधक को हानि नहीं पहुँचा पाता।

अभिचाराणि सर्वाणि मन्त्रयन्त्राणि भूतले । भूचराः खेचराश्चैव जलजाश्चोपदेशिकाः ।।४९ ।।

अर्थ: जो साधक देवी कवच का नियमित और श्रद्धा से पाठ करता है, उस पर किसी भी प्रकार के अभिचारिक प्रयोग, जैसे — मारण, मोहन, वशीकरण, उच्चाटन या जादूटोना — कभी प्रभाव नहीं डाल पाते।

देवी का यह कवच साधक को अदृश्य सुरक्षा कवच प्रदान करता है, जो सभी नकारात्मक ऊर्जाओं और तांत्रिक प्रभावों को नष्ट कर देता है। पृथ्वी पर चलने वाले, आकाश में विचरने वाले, या जल में रहने वाले — किसी भी प्रकार के जीव-जंतु, भूत-प्रेत, या दुष्ट शक्तियाँ साधक को स्पर्श तक नहीं कर पातीं।

सहजा कुलजा माला डाकिनी शाकिनी तथा । अन्तरिक्षचरा घोरा डाकिन्यश्च महाबलाः ।।५० ।।
ग्रहभूतपिशाचाश्च यक्षगन्धर्वराक्षसाः । ब्रह्मराक्षसवेतालाः कूष्माण्डा भैरवादयः ।।५१ ।।
नश्यन्ति दर्शनात्तस्य कवचे हृदि संस्थिते । मानोन्नतिर्भवेद् राज्ञस्तेजोवृद्धिकरं परम् ।।५२।।

अर्थ: देवी कवच का पाठ करने वाले साधक पर जन्मजात बाधाएँ, वंश परंपरा से आए दोष, गंडमाला, शाकिनी, और अंतरिक्ष में विचरण करने वाली शक्तिशाली डाकिनियाँ प्रभाव नहीं डाल सकतीं। यह कवच सभी जन्मजात और पारिवारिक नकारात्मक प्रभावों से सुरक्षा प्रदान करता है।

इसके साथ ही, अशुभ ग्रहों की बाधाएँ, भूत-प्रेत, पिशाच, यक्ष, गंधर्व, राक्षस, ब्रह्मराक्षस, वेताळ, कूष्मांड और भैरव जैसी नकारात्मक शक्तियाँ भी कवचधारी को नुकसान नहीं पहुँचा सकतीं। यह कवच पूर्णतः दिव्य सुरक्षा का प्रतीक है।

यदि कोई साधक देवी कवच को हृदय में प्रतिष्ठित कर इसका नियमित पाठ करता है, तो उसे देखते ही सभी नकारात्मक और दुष्ट शक्तियाँ नष्ट हो जाती हैं। साथ ही, यदि यह कवच धारण करने वाला साधक राजा या उच्च पदाधिकारी है, तो उसका मान और प्रतिष्ठा बढ़ती है, और उसका तेज अत्यंत प्रबल होता है।

यशसा वर्धते सोऽपि कीर्तिमण्डितभूतले । जपेत्सप्तशतीं चण्डीं कृत्वा तु कवचं पुरा ।।५३ ।।
यावद्भूमण्डलं धत्ते सशैलवनकाननम् । तावात्तिष्ठति मेदिन्यां संततिः पुत्रपौत्रिकी ।।५४ ।।
देहान्ते परमं स्थानं यत्सुरैरपि दुर्लभम् । प्राप्नोति पुरुषो नित्यं महामायाप्रसादतः ।।५५ ।।
लभते परमं रूपं शिवेन सह मोदते ।। ॐ ।।५६ ।।
।। देवीकवच सपूर्ण ।।

अर्थ: जो साधक देवी कवच का नियमित पाठ करता है और उसके बाद चंडी सप्तशती का पाठ करता है, वह अपनी कर्मठता और आध्यात्मिक प्रयासों के माध्यम से इस पृथ्वी पर यश और कीर्ति से सम्मानित होता है।

जब तक यह पृथ्वी पर्वत, वन और अरण्य सहित अस्तित्व में है, तब तक इस साधक की वंश परंपरा पुत्र-पौत्र आदि के रूप में अनंतकाल तक फलती-फूलती रहेगी।

देहांत के पश्चात, वह पुरुष महामाये की कृपा से ऐसा परम स्थान प्राप्त करता है जो देवताओं के लिए भी दुर्लभ है। यह स्थान शाश्वत और दिव्य आनंद से परिपूर्ण होता है।

वह साधक दिव्य और अलौकिक रूप धारण कर कल्याणस्वरूप भगवान शिव के समीप आनंदपूर्वक निवास करता है।

निष्कर्ष:

दुर्गा कवच केवल शब्दों का संग्रह नहीं, बल्कि माँ भगवती का अपने भक्तों से किया गया दिव्य वचन है। यह कवच हमें यह स्मरण कराता है कि हम कभी अकेले नहीं हैं — ब्रह्मांड की सर्वोच्च शक्ति सदैव हमारी रक्षा के लिए तत्पर है।

चाहे जीवन में शारीरिक, मानसिक, आर्थिक या आध्यात्मिक कोई भी समस्या क्यों न हो, देवी कवच हर ताले की चाबी है। इसका नियमित पाठ जीवन में सुरक्षा, समृद्धि और आंतरिक शक्ति प्रदान करता है।

इस पवित्र कवच को अपने जीवन का हिस्सा बनाएं और माँ दुर्गा की असीम कृपा का अनुभव करें। यदि आपने कभी देवी कवच का पाठ किया है, तो अपना अनुभव नीचे टिप्पणी में साझा करें — यह किसी अन्य साधक के लिए प्रेरणा बन सकता है।

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