18 पुराण और 6 शास्त्र: आसान भाषा में संपूर्ण परिचय

Nikhil

August 3, 2025

A glowing semi-circle of ancient tomes labeled Puranas (पुराण) and Shastras (शास्त्र) surrounds an open book, above which a meditative figure sits illuminated by ethereal light, with floating celestial symbols and oil lamps casting a sacred ambience.

क्या आपने कभी सोचा है कि हमारी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत में 18 पुराण और 6 शास्त्र किस प्रकार जीवन के विभिन्न पहलुओं को छूते हैं?

सनातन धर्म के पटल पर “पुराण और शास्त्र” न केवल धर्म‑कर्म का मार्गदर्शन करते हैं, बल्कि आचार‑व्यवहार, दर्शन, राजनीति, अर्थ, धर्म और मोक्ष से जुड़ी असीम चीज़ों को भी स्पष्ट रूप से परिभाषित करते हैं। आज भी इन ग्रंथों का अध्ययन इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि यह हमें न केवल अतीत से जोड़ता है, बल्कि वर्तमान के जीवन मूल्यों और नैतिक सिद्धांतों का भी आधार प्रदान करता है।

इस लेख में हम समझेंगे कि यह ग्रंथ क्यों उतने ही प्रासंगिक हैं जितने वे आज से हजारों वर्ष पहले थे, और कैसे इनका ज्ञान हमारे व्यक्तिगत एवं सामाजिक विकास का आधार बन सकता है।

पुराण क्या हैं:

पुराण हिंदू धर्म के प्रमुख धार्मिक ग्रंथों में से एक हैं, जो देवी‑देवताओं, ऋषियों, राजाओं की गाथाएँ, सृष्टि का रहस्य, धर्म‑कर्म, कर्मफल और मोक्ष का मार्ग सरल कहानियों में प्रस्तुत करते हैं। इन कथाओं में भजन, नियम और उपाख्यान शामिल हैं, जो ज्ञान और सौंदर्य का अनूठा संगम दिखाते हैं।

  • आध्यात्मिक मार्गदर्शन
    ये ग्रंथ हमें नैतिक मूल्यों से परिचित कराते हैं और जीवन के सही रास्ते पर ले जाते हैं।
  • सांस्कृतिक समृद्धि
    इनमें मिलने वाली कहानियाँ और वर्णन हमें भारतीय इतिहास, कला और भूगोल की भी जानकारी देते हैं।
  • राजनीति और समाज
    राजाओं के आदर्श और उनके निर्णय‑प्रक्रिया के अनुभव हमारे निजी और सार्वजनिक जीवन में प्रेरणा का स्रोत बनते हैं।
  • विभाजन और विविधता
    18 महापुराणों और कई उपग्रंथों में विभाजित ये कथाएँ वैष्णव, शैव और शाक्य परंपराओं के अनुरूप हमें विभिन्न दृष्टिकोण दिखाती हैं।

इस प्रकार, पुराण न केवल धार्मिक शिक्षा प्रदान करते हैं, बल्कि वे जीवन के सभी पहलुओं में सफलता और संतुलन पाने के लिए हमारी बुद्धि और भावनाओं को संवारते हैं।

पुराणों के प्रकार:

भारतीय साहित्य में पुराणों का विशेष महत्व है। इनके अध्ययन से आत्म‑विश्वास और धर्मपरायणता बढ़ती है, साथ ही संस्कृति के आदर्शों का निर्माण होता है। इन ग्रंथों में देवी‑देवता, अवतार और युगों की आकर्षक कथाएँ मिलती हैं, साथ ही धर्म के नियम, ध्यान‑भक्ति के मार्ग, नैतिकता, विज्ञान, ज्योतिष, वास्तु, विवाह और पूजा जैसे कई पक्षों पर व्यावहारिक जानकारी भी दी गई है।

1. ब्रह्म पुराण:

ब्रह्म पुराण” हिंदू धर्म के अठारह प्रमुख ग्रंथों में से एक है। श्री वेद व्यास के शिष्य लोमहर्षणजी ने नैमिषारण्य की पवित्र भूमि में इसकी कथा वाणीबद्ध की। यह ग्रंथ सृष्टि के आरंभ से चौदह मन्वन्तरों तक का विस्तृत वर्णन प्रस्तुत करता है।

राजाओं की वंशावली, स्यमंतकमणी की रहस्यमयी गाथा और जम्बूद्वीप सहित भारतवर्ष के विविध चरण मन मोह लेते हैं। यह संग्रह प्लक्ष सहित छह द्वीपों, पाताल-नरक, हरी नाम एवं कीर्तन की महिमा से समृद्ध है। विश्व के खगोलीय पिंडों और लोकों की स्थिति को रोचक ढंग से चित्रित किया गया है।

विष्णु शक्ति के प्रभाव और शिशुमार चक्र का उल्लेख इसे और भी आकर्षक बनाता है। पढ़ते समय आपको आध्यात्मिक आनंद और ब्रह्मांडीय रहस्यों की गहरी समझ मिलेगी।

2. पद्म पुराण:

भगवान विष्णु की नाभि से उत्पन्न पद्म (कमल) से सृष्टि की रचना हुई, और उसी दिव्य कमल की कथा को विस्तार से इस ग्रंथ में बताया गया है। इसमें लगभग 55,000 श्लोक और पाँच खंड हैं, जो जीवन, धर्म और मोक्ष से जुड़ी गहराइयों को सरल भाषा में समझाते हैं:

  • सृष्टिखंड – सृष्टि की शुरुआत और ब्रह्मा, विष्णु, महेश की अद्भुत कथाएँ।
  • भूमिखंडपितृभक्ति, ब्रह्मचर्य, धर्म और मृत्यु के बाद के फल की चर्चा।
  • स्वर्गखंडतीर्थों, नदियों और पृथ्वी की रचना, स्थिति और लय का वर्णन।
  • पातालखंड – भगवान श्रीराम और श्रीकृष्ण की लीलाएँ, दैत्य-असुरों की कथाएँ।
  • उत्तरखंडगंगावतरण, बद्रिकाश्रम, व्रत, त्योहार और मोक्ष का महत्व।

इस ग्रंथ को पढ़ने या सुनने से न केवल पापों का क्षय होता है, बल्कि जीवन में पुण्य, शांति और आध्यात्मिक ऊर्जा की प्राप्ति भी होती है।

3. विष्णु पुराण:

विष्णु पुराण हिन्दू धर्म के अट्ठारह महान ग्रंथों में से एक है, जिसमें भगवान विष्णु और उनके रूपों से जुड़ी जीवनदायिनी कथाएँ समाहित हैं। इस ग्रंथ के मुख्य विषय हैं:

  • सृष्टि की रचना
    ब्रह्मांड के निर्माण का रहस्य और उसमें भगवान विष्णु की भूमिका बताई गई है।
  • दशावतार
    मत्स्य से लेकर कल्कि तक, प्रत्येक अवतार की कथा हमें साहस, धर्म और भक्ति का संदेश देती है।
  • धर्म एवं कर्म
    सनातन धर्म के सिद्धांत, कर्मफल का महत्व और आत्मा को मोक्ष तक ले जाने के मार्गों का वर्णन है।
  • प्रलय और नव-सृजन
    ब्रह्मांड के विनाश और पुनरुत्थान के चक्र से निरंतर परिवर्तन और पुनर्नवीनीकरण का ज्ञान मिलता है।

यह ग्रंथ न केवल आध्यात्मिक ज्ञान का भंडार है, बल्कि जीवन जीने की सच्ची दिशा भी दर्शाता है।

4. शिव पुराण:

शिव पुराण हिन्दू धर्म के अट्ठारह महाग्रंथों में से एक अत्यंत महत्वपूर्ण ग्रंथ है, जिसमें भगवान शिव की महिमा और उनकी उपासना का समग्र वर्णन मिलता है। प्रमुख विषय इस प्रकार हैं:

  • भगवान शिव का स्वरूप
    परमब्रह्म के रूप में शिव की तात्विक महिमा, रहस्य और कल्याणकारी स्वरूप का विस्तृत विवेचन।
  • विभिन्न रूप और अवतार
    योगी, गृहस्थ, रुद्र, अर्धनारीश्वर जैसे अनेक रूपों के साथ-साथ वीरभद्र और भैरव जैसे अवतारों की कथाएँ।
  • ज्योतिर्लिंगों की महत्ता
    भारत के 12 ज्योतिर्लिंगों का स्वरूप, उनकी पूजा-प्रथा और आध्यात्मिक लाभ।
  • उपासना के विधान
    मंत्र, साधना पद्धतियाँ और पूजापाठ के नियम, जिनसे शिव की कृपा प्राप्त होती है।

यह ग्रंथ शिवभक्तों के लिए विश्वास और भक्ति का स्रोत है, जिसे श्रद्धापूर्वक आत्मसात करने पर जीवन में कल्याण और अंततः मोक्ष की प्राप्ति संभव होती है।

5. भागवत पुराण:

भागवत पुराण हिन्दू धर्म के अट्ठारह महाग्रंथों में से एक दिव्य रचना है, जिसे महर्षि व्यासदेव ने रचा। श्रवण मात्र से मुक्ति की प्राप्ति होती है और हृदय में श्रीहरि का वास– यही इसकी महिमा है।

मुख्य विशेषताएँ

  • संरचना: 18,000 श्लोकों में विभक्त 12 स्कंध
  • केंद्रबिंदु: राजा परीक्षित और व्यासदेव के पौत्र शुकदेव के बीच भागवत कथा एवं भक्ति-उपदेश।
  • भक्ति योग: मोक्ष का मार्ग केवल ज्ञान से नहीं, अपितु अविचलित भक्ति से भी संभव है।

स्कंधवार मुख्य विषय

  • प्रथम स्कंध: भागवत कथा का आरंभ, भगवद्भक्ति का महात्म्य।
  • द्वितीय स्कंध: विष्णु का विराट रूप, सृष्टि-रचना और ध्यान-विधि
  • तृतीय स्कंध: कपिल मुनि के उपदेश, अष्टांग योग, विदुर-मैत्रेय संवाद।
  • चतुर्थ स्कंध: स्वायम्भुव मनु की वंशावलियाँ, ध्रुव की कथा।
  • पंचम स्कंध: छह द्वीपों का वर्णन, सूर्यदेव का रथ और उनकी गतिविधियाँ।
  • षष्ठ स्कंध: अजामिल की कथा, दिति–अदिति की संताने और मरुद्गण की उत्पत्ति।
  • सप्तम स्कंध: प्रह्लाद और हिरण्यकशिपु की गाथा, मानवधर्म, स्त्रीधर्म और वर्णधर्म
  • अष्टम स्कंध: मत्स्यावतार, राजा बलि, समुद्रमंथन
  • नवम स्कंध: श्रीराम, हरिश्चंद्र, भागीरथअंबरीश की कथाएँ।
  • दशम स्कंध: श्रीकृष्ण की बाललीलाएं और युवावस्था।
  • एकादश स्कंध: सत्संग का महत्व, सिद्धियाँ और कर्म तथा कर्मफल त्याग की विधि।
  • द्वादश स्कंध: कलियुग के राजवंश, बुराइयों से बचने के उपाय, चार प्रकार के प्रलय

उद्देश्य एवं लाभ

  • भक्ति योग द्वारा मोक्ष मार्ग की स्पष्ट रूपरेखा
  • आध्यात्मिक ज्ञान और मन की एकाग्रता की प्राप्ति
  • जीवन में अटूट भक्ति और आत्मिक कल्याण की अनुभूति

इस ग्रंथ का अवलोकन और श्रवण करने से हृदय में दिव्य अनुभूति जागृत होती है और भक्त जीवन-संघर्षों से पार पाकर परमशांति का आनंद प्राप्त करता है।

6. भविष्य पुराण:

भविष्यपुराण हिन्दू धर्म के अट्ठारह महाग्रंथों में से एक महत्त्वपूर्ण सात्विक रचना है, जिसके श्रवण मात्र से बड़े पाप जैसे ब्रह्महत्या नष्ट होते हैं और अश्वमेध यज्ञ का पुण्य मिलता है। ब्रह्माजी द्वारा इसका प्रथमोपदेश किया गया और यह ग्रंथ परममंगलप्रद, सद्बुद्धि वर्धक, यश–कीर्ति प्रदायक एवं मोक्षदायक है।

संरचना एवं मुख्य पर्व

  • श्लोक संख्या: लगभग 50,000
  • चार पर्व:
    1. ब्राह्मपर्व
    2. मध्यमपर्व
    3. प्रतिसर्गपर्व
    4. उत्तरपर्व

प्रमुख विषयवस्तु

  • सृष्टि विज्ञान: तीनों लोकों की उत्पत्ति का विवरण।
  • संस्कार-विधि: विवाहादि प्रमुख संस्कारों का विधान।
  • लक्षण विवेचन: स्त्री–पुरूष के गुण-दोष
  • देवपूजा और यज्ञ: सूर्यनारायण, विष्णु, रुद्र, दुर्गा, सत्यनारायण के महात्म्य व पूजा-विधि; विविध यज्ञों का संचालन
  • राजधर्म: राजाओं के कर्तव्य और शासन-सिद्धांत
  • तीर्थ एवं प्रायश्चित: प्रमुख तीर्थस्थलों का वर्णन तथा प्रायश्चित, संध्या-विधि, स्नान-भोजन-विधि
  • धर्म संहिता: जातिधर्म, कुलधर्म, वेदधर्म और यज्ञ-मण्डल में अनुष्ठित अनुष्ठानों का विवेचन

इस ग्रंथ का अध्ययन और श्रवण जीवन में मंगल, बुद्धि–बीज, यश–कीर्ति और अन्ततः मोक्ष प्रदान करता है।

7. नारदीय पुराण:

नारदीय पुराण हिन्दू धर्म के अट्ठारह महाग्रंथों में से एक है, जो वेदसिद्धांतों का प्रतिपादन करते हुए पापों की शांति, ग्रहदोष निवारण और विष्णुभक्ति का मार्ग दिखाता है।

संरचना

  • पूर्व-भाग: विष्णुभक्ति का महात्म्य, सृष्टि क्रम, सत्संग की महिमा, गंगा–यमुना संगम, प्रायश्चित, श्राद्ध तथा तर्पण, लक्ष्मी–नारायण व्रत, मासोपवास व्रत, एकादशी व्रत की विधि और महिमा
  • उत्तर-भाग: विभिन्न काल–स्थान विशेषों में गंगा स्नान, गया तीर्थ, ब्रह्मतीर्थ, विष्णुपद और काशीपुरी की महत्ता।

मुख्य लाभ

  • समस्त पापों का नाश और दिव्य पुण्यफल की प्राप्ति
  • ग्रहदोषों से रक्षा और जीवन में मंगलाभिघातों का निवारण
  • विष्णु भक्ति द्वारा आत्मशुद्धि और मोक्षमार्ग की प्राप्ति

पठन-निर्देश
इस ग्रंथ का वाचन भगवान विष्णु के आगे, या किसी पुण्य क्षेत्र में, विशेषकर ब्राह्मणों और भक्ति-परायण योगियों द्वारा ही करना चाहिए। काम, क्रोध आदि दोषों का त्याग करने वालों तथा सदाचारी हृदय वाले भक्तों के लिए यह मोक्षसाधक ग्रंथ है।

8. मार्कंडेय पुराण:

मार्कंडेय पुराण हिन्दू धर्म का एक प्राचीन पौराणिक ग्रंथ है, जो ऋषि मार्कण्‍डेय की शिक्षाएँ और कथाएँ समेटे हुए है। इसमें जीवन-मरण के रहस्य, पाप और पुण्य के फल, तथा देवी-देवताओं की महिमा का विस्तृत वर्णन मिलता है।

मुख्य विषय

  • हरिश्चंद्र की गाथा: सत्यनिष्ठ राजा हरिश्चंद्र का चरित्र और उनके संघर्षों का वृत्तांत।
  • जीवन, मृत्यु और नरक: आत्मा के जन्म-मरण चक्र, विभिन्न पापों के अनुसार नरक की अवस्थाएँ
  • देवी महात्म्य: दुर्गा देवी की महिमा और लीलाएँ (श्रीदुर्गासप्तशती के रूप में प्रसिद्ध)।
  • अनसूया माता: उनकी पवित्रता, त्याग और भक्ति-कथा
  • भगवान दत्तात्रेय: उनका अवतार और जीवनोपदेश।

अन्य महत्वपूर्ण विषय

  • त्याज्य ग्रहों का प्रभाव और निवारण विधियाँ
  • द्रव्यशुद्धि व अशुद्ध निर्णय का विवेचन
  • योग साधना
  • स्वायम्भुव मनु की वंश-परंपरा एवं दक्ष प्रजापति की संतति
  • जंबुद्वीप एवं भारतवर्ष के विभाग, प्रमुख नदियाँ, पर्वत और जनपद

यह ग्रंथ धर्म, भक्ति और आध्यात्मिक जागरण का मार्गदर्शक है, जो सदा नयी पीढ़ियों के लिए ज्ञान का अमूल्य स्रोत बने रहेगा।

9. अग्नि पुराण:

अग्नि पुराण हिन्दू धर्म का एक उत्कृष्ट ग्रंथ है, जिसे ब्रह्मस्वरूप कहा गया है। इसमें परा और अपरा दोनों विद्याओं का समग्र प्रतिपादन किया गया है, जैसे:

  • वेदविद्या एवं शास्त्र: छन्द, व्याकरण, निरुक्त, मीमांसा, न्यायशास्त्र, धर्मशास्त्र, अर्थशास्त्र, वेदान्त आदि विषयों का विवेचन।
  • विविध विज्ञान: ज्योतिष, आयुर्वेद, धनुर्वेद, गन्धर्ववेद, पुराण विद्या, निघण्टु (कोश) इत्यादि को विस्तार से बताया गया है।
  • परमेश्वर की महिमा: विष्णु-महिमा और सृष्टि का रहस्य।

अध्ययन और श्रवण लाभ

  • भगवान विष्णु-भक्ति के साथ नित्य पाठ या श्रवण करने से सभी प्रकार के भय और बाधाएँ नष्ट होती हैं।
  • ग्रंथ से संबंधित साहित्यिक सामग्री (शरयंत्र(पेटी), सूत,पत्र(पन्ने), काठकी पट्टी, उसे बांधने की रस्सी तथा वेष्टन-वस्त्र आदि) दान करने पर स्वर्गलोक एवं अंततः ब्रह्मलोक की प्राप्ति होती है।
  • जिस घर में यह पुस्तक प्रतिष्ठित रहती है, वहाँ संकट का प्रवेश नहीं होता और मोक्ष का मार्ग प्रशस्त होता है।

इसलिए इसे परमात्मा का स्वरूप मानकर स्मरण और अध्ययन करना अत्यंत फलदायी होता है।

10. ब्रह्मवैवर्त पुराण:

ब्रह्मवैवर्त पुराण हिन्दू धर्म के अट्ठारह महाग्रंथों में से एक है, रचयिता महर्षि व्यास। यह करीब 18,000 श्लोकों में बंटा चार खंडों में विभाजित है:

  • ब्रह्मखंड: परब्रह्म को सर्वव्यापी रूप में वर्णित, जिसका ध्यान योगी, संत और वैष्णव करते हैं।
  • प्रकृतिखंड: सभी जीवों, देवी–देवताओं की उत्पत्ति, कर्म एवं शालिग्राम शिला की महिमा; साथ ही मंत्र, स्तोत्र, कवच एवं पाप–पुण्य की स्थितियाँ।
  • गणेशखंड: गणेशजी के जन्म, चरित्र, उनके गूढ़ कवच, स्तोत्र और मंत्रों का विवेचन।
  • श्रीकृष्णजन्मखंड: भगवान श्रीकृष्ण के अवतार, बाललीलाएँ, रासलीलाएँ और अन्य महत्त्वपूर्ण घटनाएँ।

यह ग्रंथ भक्ति, प्रेम और धर्म के महत्व को उजागर करता है, और इसके श्रवण–पठन से भक्तों को मोक्षमार्ग की प्राप्ति का आश्वासन मिलता है।

11. लिंग पुराण:

लिंग पुराण हिन्दू धर्म के अट्ठारह महाग्रंथों में देवाधिदेव भगवान शंकर की महिमा उजागर करने वाला एक विशिष्ट ग्रंथ है।

मुख्य विशेषताएँ

  • श्लोक संख्या: लगभग 11,000
  • रचना: महर्षि व्यास द्वारा, इसमें धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष के मार्ग प्रदत्त हैं।
  • लिंग प्रतिष्ठा: प्रारंभ में योग और कल्प आख्यान के बाद शिवलिंग के प्रादुर्भाव एवं पूजा-विधि का विस्तृत विवरण।
  • दश लक्षण: ईशान कल्प, सम्पूर्ण सर्ग–विसर्ग इत्यादि गुण लोक कल्याण हेतु उद्घाटित।

प्रमुख कथाएँ एवं संवाद

  • सनत्कुमार और शैलादि के मध्य सुंदर संवाद
  • दधीचि ऋषि का चरित्र तथा युगधर्म का विवेचन
  • आदि सर्ग का विस्तार और त्रिपुर महायुद्ध
  • अन्धकासुर वध, वाराह और नरसिंह अवतार-कथाएँ
  • जलंधर वध, शिवजी के हज़ार नाम, कामदहन और पार्वती विवाह

धार्मिक लाभ

  • इस ग्रंथ का पाठ या श्रवण भक्तों को भक्ति और मुक्ति प्रदान करता है।
  • ज्योतिर्लिंगों के उद्भव की कथा से शिवभक्ति की गहरी अनुभूति होती है।
  • जो इसे स्मरण और आचरण में लाते हैं, उन्हें लोकिक बाधाएँ टूटकर मोक्ष-मार्ग प्रशस्त होता है।

12. वराह पुराण:

वराह पुराण हिन्दू धर्म के प्राचीन ग्रंथों में से एक है, जिसमें भगवान विष्णु के वराह अवतार की महिमा और आत्मकल्याणकारी शिक्षाएँ समाहित हैं।

मुख्य अंश

  • वराह अवतार की कथा
    हिरण्याक्ष राक्षस का संहार कर पृथ्वी को उद्धारने हेतु श्रीहरि ने वराह रूप धारण किया।
  • तीर्थों का महत्व
    चक्रतीर्थ, असीकुंड, मथुरातीर्थ सहित अन्य पवित्र स्थलों का विवरण और वहाँ होने वाले अनुष्ठानों का पुण्यफल।
  • व्रत, यज्ञ एवं दान
    विभिन्न तिथियों पर किए जाने वाले व्रत, यज्ञ और दान से आत्मिक शुद्धि और मोक्षमार्ग का मार्गदर्शन।

लाभ
इस ग्रंथ का अवलोकन आत्म-उत्थान, पापक्षय और परमशांति की प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त करता है।

13. स्कंद पुराण:

स्कंद पुराण हिन्दू धर्म का विशालतम महाग्रंथ है, जिसमें 81,100 श्लोकों में भगवान कार्तिकेय—शिव एवं पार्वती के पुत्र—के जीवन, उनकी उत्पत्ति, देवताओं के सेनापति बनकर तारकासुर वध सहित महागाथाएँ संकलित हैं। सात खंडों—माहेश्वर, वैष्णव, ब्राह्म, काशी, अवंती, रेवा एवं प्रभास—में निम्नलिखित विषयों का समग्र विवेचन मिलता है:

  • भगवान शिव और श्रीविष्णु की महिमा: दोनों देवों के रूप, लीलाएँ और परमशक्ति का विवरण।
  • तीर्थवर्णन: जगन्नाथपुरी, बद्रिकाश्रम, अयोध्या, रामेश्वर, काशी, नर्मदा, अवंतिका, द्वारका जैसे प्रमुख तीर्थों का विस्तृत परिचय।
  • व्रत एवं उपवास: उनके विधि-प्रकार, पुण्यफल और आत्मशुद्धि के उपाय।
  • आध्यात्मिक विषय: वैराग्य, भक्ति, सदाचार, धर्म, दान और तपस्या के महत्व पर सुंदर चर्चा।

यह ग्रंथ भक्तों को आत्मशुद्धि, भक्ति-बल और मोक्षमार्ग की दिशा प्रदान करता है।

14. वामन पुराण:

वामन पुराण हिन्दू धर्मग्रंथों में भगवान विष्णु के पाँचवें अवतार वामन से जुड़ी कहानियाँ, धर्म, भौगोलिक विवेचन और उपदेशों का समग्र चित्रण प्रस्तुत करता है:

  • प्रमुख कथा
    राजा बलि से तीन पग भूमि मांगना और अपना त्रिलोकीय रूप धारण कर सारे लोकों पर अधिकार स्थापित करना।
  • लीलाओं का संगम
    शिवजी के लीलाचरित्र, नर-नारायण की उत्पत्ति, तथा उर्वशी की गौरवमयी कथा।
  • भूगोल व तीर्थ
    जम्बूद्वीप की स्थितियाँ, पर्वत-श्रेणियाँ व नदियाँ, साथ ही कुरुक्षेत्र के सात प्रसिद्ध वन और अन्य पवित्र तीर्थस्थलों का महात्म्य।
  • धर्म-शास्त्र
    दशांग धर्म, आश्रम धर्म एवं सदाचार के सिद्धांत।
  • महायुद्ध एवं प्रमुख घटनाएँ
    दक्षयज्ञ का विनाश, कामदेवदहन, अन्धकासुर व महिषासुर वध, देवों–असुरों के वाहन व नरकदायी कर्म।
  • स्तोत्र एवं उपसंहार
    विष्णुपंजरस्तोत्र के पाठ से कल्याण, अंत में विष्णुभक्ति की सर्वोच्च राह प्रदर्शित करने वाले उपदेश।

यह ग्रंथ भक्तों को धर्म, भक्ति और मोक्षमार्ग की साक्षात अनुभूति कराता है।

15. कूर्म पुराण:

कूर्म पुराण हिन्दू धर्म के अट्ठारह महाग्रंथों में से एक है, जो सृष्टि की उत्पत्ति और भगवान विष्णु के कूर्मावतार की महिमा उजागर करता है।

संरचना

  • दो भाग: पूर्व और उत्तर
  • चार संहिताएँ: ब्राह्मी, भागवती, सौरी, वैष्णवी
  • पाँच लक्षण: सर्ग (सृष्टि), प्रतिसर्ग (पुनः सृजन), वंश (राजवंश), मन्वंतर (मनु काल), वंशानुचरित (वंश इतिहास)

मुख्य विषय

  • काशी–प्रयाग महात्म्य: इन पवित्र स्थलों का विशेष महत्व
  • गीता कथाएँ: ईश्वर गीता, व्यास गीता इत्यादि
  • धर्म–अर्थ–काम–मोक्ष: चार पुरुषार्थों का समग्र विवेचन
  • ब्रह्मज्ञान: अध्ययन से आत्मा की शुद्धि एवं परमगति

पठन–निर्देश
यह ग्रंथ श्रद्धालु, धार्मिक एवं शांतचित्त व्यक्तियों को ही सुनना चाहिए; नास्तिकों के समक्ष इसका वाचन उचित नहीं है।

इस ग्रंथ के श्रवण मात्र से पापकर्म नष्ट होते हैं और पुण्य की प्राप्ति होती है।

16. मत्स्य पुराण:

मत्स्य पुराण हिन्दू धर्म का एक प्रमुख ग्रंथ है, जिसमें भगवान विष्णु के मत्स्य अवतार की कथा का विस्तृत वर्णन मिलता है।

मुख्य विषय

  • मत्स्य अवतार: राजा मनु की रक्षा कर संसार को जलप्रलय से उद्धारने की प्रेरक कथा।
  • राजनीति एवं शासन: आदर्श राजा के कर्तव्य, शासन नीतियाँ और प्रशासनिक सिद्धांत
  • वास्तु शास्त्र: भवन निर्माण, नगर नियोजन तथा मूर्तिकला एवं शिल्प-विधान के नियम।
  • सावित्री उपाख्यान: नारी जाति की गरिमा और वीरता का अद्भुत वर्णन।
  • व्रत, पर्व एवं तीर्थ: दान-पूजन की विधियाँ और पुण्यफल की प्राप्ति के उपाय।

यह ग्रंथ भक्ति, नीति, कला और जीवनोपयोगी विज्ञान का संगम है, जो श्रद्धालुओं को आध्यात्मिक एवं सामाजिक दोनों ही दृष्टियों से मार्गदर्शित करता है।

17. गरुड़ पुराण:

गरुड़ पुराण हिन्दू धर्म का एक महत्वपूर्ण महाग्रंथ है, जिसे सर्वप्रथम ब्रह्मादि देवताओं सहित भगवान शिव को भगवान विष्णु ने वाणी द्वारा सुनाया था।

मुख्य अवयव

  • सर्ग: सृष्टि की उन्नति और प्रारंभिक सर्ग–वर्णन।
  • देवार्चन-विधि: देवपूजा के नियम, सुदर्शन चक्र और शालिग्राम प्रतिष्ठा सहित अनुष्ठान।
  • विष्णुपंजरस्तोत्र & ध्यानयोग: भोग और मोक्ष दोनों की प्राप्ति कराने वाले स्तोत्र एवं समाधि के उपाय।
  • महात्म्य: विष्णु सहस्रनाम, मृत्युंजय मंत्र, सूर्य पूजा और प्राणेश्वरी विद्या का विस्तृत परिचय।
  • पूजा-पाठ विधियाँ: हयग्रीव एवं दुर्गा देवी की आराधना, शिवरात्रि व्रत, चातुर्मास्य व्रत और एकादशी महिमा।
  • धर्म एवं ज्योतिष: वर्ण–आश्रम धर्म, भारतवर्ष के तीर्थस्थल, लग्नफल और राशियों के भेद।

इस ग्रंथ का अध्ययन और श्रवण जीवन में अनिष्ट निवारण, भक्तिवर्धन और अंततः मोक्ष की प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त करता है।

18. ब्रह्मांड पुराण:

ब्रह्मांड पुराण हिन्दू धर्म का एक विशिष्ट ग्रंथ है, जिसमें भारतीय संस्कृति, सामाजिक व्यवस्था और वैदिक युग की गौरवशाली परंपराओं का विवेचन मिलता है। इसकी शैली गूढ़ होने के साथ-साथ तर्कसंगत भी है, जो पाठक को ज्ञान और चिंतन की दिशा में प्रेरित करती है।

मुख्य विषयवस्तु

  • ब्रह्मांड की उत्पत्ति: सृष्टि के रहस्य और स्वायम्भुव मनु के सर्ग का विवेचन।
  • भौगोलिक ज्ञान: भारतवर्ष, नदियाँ, सात द्वीप, पर्वतों का योजनाबद्ध उल्लेख।
  • देवी-देवताओं की कथाएँ: विशेष रूप से भगवान परशुराम की महिमा और गौरवपूर्ण लीलाएँ।
  • राजाओं और ऋषियों का चरित्र: तपस्वी महापुरुषों और धर्मपरायण राजाओं के प्रेरक जीवन प्रसंग।
  • काल और कर्म सिद्धांत: चार युगों का विश्लेषण तथा नरकों का वर्णन जो कर्मफल को समझाने में सहायक है।

यह ग्रंथ अध्ययनशीलों को धर्म, इतिहास और ब्रह्मज्ञान से जोड़ता है और आत्मिक उत्थान का मार्ग दिखाता है।

इन महापुराणों का अध्ययन हिंदू धर्म और संस्कृति की गहन समझ प्रदान करता है। इनके द्वारा दी गई शिक्षाएँ और कथाएँ हमें धर्म, कर्म, भक्ति और ज्ञान के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देती हैं। इनके माध्यम से हम अपने जीवन को सार्थक और उद्देश्यपूर्ण बना सकते हैं।

छह शास्त्र (षड्दर्शन):

“छह शास्त्र” हिन्दू दर्शन के मुख्य आधार हैं, जिन्हें षड्दर्शन भी कहा जाता है। ये दर्शनशास्त्र क्रमशः न्याय, वैशेषिक, सांख्य, योग, मीमांसा, और वेदांत के नाम से जाने जाते हैं। ये शास्त्र जीवन के विभिन्न पहलुओं का विवेचन करते हैं और आत्मज्ञान, नैतिकता, और धर्म के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देते हैं। इनका अध्ययन व्यक्ति को मानसिक, शारीरिक और आध्यात्मिक दृष्टि से समृद्ध बनाता है।

1. न्याय शास्त्र:

न्यायशास्त्र हिन्दू दर्शन के षड्दर्शन में से एक है, जिसे ऋषि गौतम ने स्थापित किया। इसका मूल उद्देश्य तर्क और प्रमाण के माध्यम से सही ज्ञान की खोज करके सत्य को उजागर करना है, जिससे मुक्ति (मोक्ष) संभव हो सके।

मुख्य तत्व

  • प्रमाण-साधन: प्रत्यक्ष, अनुमान, उपमान, शब्दादि माध्यमों से सत्यापन।
  • वाद–विवेचन: तर्क, निर्णय, वाद, जल्प और वितण्डा के नियम।
  • त्रुटि–चिन्ह: हेत्वाभास, छल, जाति जैसे दोषों की पहचान और निराकरण।
  • अन्य अवयव: संशय, प्रयोजन, दृष्टांत, सिद्धांत, अवयव, निग्रहस्थान आदि।

इन 16 विषयों की समझ से व्यक्ति तर्कसंगत सोच विकसित करता है, जीवन के रहस्यों को बेहतर ढंग से समझ पाता है और संतुलित, सशक्त निर्णय ले सकता है।

2. वैशेषिक शास्त्र:

वैशेषिक शास्त्र हिंदू दर्शन का एक मुख्य अंग है, जिसके प्रवर्तक महर्षि कणाद थे। इसका उद्देश्य भौतिक जगत की संरचना और वास्तविकता को समझना है।

मुख्य अवयव

  • नौ द्रव्य: पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश, काल, दिशा, आत्मा और मन—ये सभी ब्रह्मांड के आधार हैं।
  • चौबीस गुण: रूप, रस, गंध, स्पर्श, संख्या, परिमाण, पृथक्त्व, संयोग, विभाग, परत्व, अपरत्व, बुद्धि, सुख, दुःख, इच्छा, द्वेष, प्रयत्न, गुरुत्व, द्रवत्व, स्नेह, धर्म, अधर्म, संस्कार और शब्द

यह दर्शन बताता है कि कैसे ये द्रव्य और गुण आपस में मिलकर जगत का निर्माण करते हैं और आत्मज्ञान द्वारा जीवन के रहस्यों को उजागर किया जा सकता है। इससे व्यक्ति को संतुलित, विवेकी और सशक्त जीवन जीने की प्रेरणा मिलती है।

3. सांख्य शास्त्र:

सांख्य शास्त्र भारतीय दर्शन का सबसे प्राचीन ग्रंथ है, जिसकी रचना महर्षि कपिल ने सतयुग के आरंभ में की थी। भगवद्‌गीता में भी “सिद्धानां कपिलो मुनि:” कहकर उनका गौरव बताया गया है।

यह दर्शन बताता है कि सम्पूर्ण जगत २५ तत्त्वों से निर्मित है:

  • पुरुष (शुद्ध चेतना)
  • प्रकृति (मूल सिद्धि)
  • महत्त्व (बुद्धि)
  • अहंकार (स्व-अहंकार)
  • पंचमहाभूत (पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश)
  • पंचतन्मात्राएँ (शब्द, स्पर्श, रूप, रस, गंध)
  • मन (संकलन-विभोजन का केन्द्र)
  • दश इंद्रियाँ (पाँच ज्ञानेंद्रियाँ और पाँच कर्मेंद्रियाँ)

इन तत्वों की पहचान करके हमें आत्म-साक्षात्कार और मोक्ष का मार्ग स्पष्ट होता है। यह दर्शन जीवन के उद्देश्य को समझने और एक संतुलित, उद्देश्यपूर्ण जीवन जीने की प्रेरणा देता है।

4. योग शास्त्र:

योग शास्त्र हिन्दू षड्दर्शन का एक प्रमुख अंग है, जिसकी रचना महर्षि पतंजलि ने ‘योगसूत्र’ के रूप में की। इसमें आत्म-विकास के वैज्ञानिक उपाय और मन–चित्त पर नियंत्रण का संपूर्ण मार्गदर्शन मिलता है, जिससे व्यक्ति अपने ‘स्व’ तक पहुँच सके।

मुख्य विषय

  • चित्त नियंत्रण: चित्तवृत्तियों का निरोध और समाधि के भेद-प्रभेद।
  • अष्टांग योग: यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि—आठ अंग जो सम्पूर्ण योगाभ्यास की नींव हैं।
  • अतिरिक्त साधन: तप, स्वाध्याय, ईश्वर-प्रणिधान और पंचक्लेशों का निवारण।
  • समाधि और कैवल्य: समाधि में चित्त का एकाग्र होना, जबकि कैवल्य जन्म-मरण के बंधन से पूर्ण मुक्ति का अवस्थिति है।

इन साधनों का नियमित अभ्यास व्यक्ति को लाभ-हानि की चिंता से मुक्त कर, जीवन को संतुलित, सशक्त और आत्मिक मुक्ति की ओर ले जाता है।

5. मीमांसा शास्त्र:

मीमांसा शास्त्र हिन्दू दर्शन के षड्दर्शन में से एक है, जिसे महर्षि जैमिनी ने स्थापित किया। इसे पूर्व मीमांसा भी कहते हैं क्योंकि यह विशेष रूप से वैदिक कर्मकांड की व्याख्या और उसका तर्कपूर्ण समर्थन प्रस्तुत करता है।

मुख्य उद्देश्य

  • वैदिक विधियों के आशय को स्पष्ट करना और उनके बीच सामंजस्य स्थापित करना।
  • कर्मकांड के सिद्धांत—कर्तव्य, कर्मफल, आत्मा की अमरता, अदृष्ट और पुनर्जन्म—का युक्तिवत वर्णन।
  • वेदों की सत्यता और जगत की वास्तविकता के आधार तैयार करना।

लाभ
मीमांसा का अध्ययन हमें धर्म, कर्त्तव्य और कर्मकांड के महत्व को समझने में मदद करता है, जिससे जीवन अधिक धार्मिक, नैतिक और संतुलित बनता है।

6. वेदांत शास्त्र

वेदांत शास्त्र महर्षि वेदव्यास द्वारा प्रवर्तित हिंदू दर्शन के षड्दर्शन में उच्चतम स्थान वाला ग्रंथ है। इसे उत्तर मीमांसा, ब्रह्मसूत्र आदि नामों से भी जाना जाता है, क्योंकि इसमें संक्षिप्त शब्दों में परब्रह्म का स्वरूप और जीव–जड़ जगत का संबंध स्पष्ट किया गया है।

मुख्य विशेषताएँ

  • परब्रह्म का स्वरूप: परब्रह्म ही सर्वोच्च सत्य और सृष्टि का निमित्तकारण है। उसकी परा (सचेत) और अपरा (संसारिक) दो प्रकृतियाँ हैं, जो उसके अभिन्न अंग हैं।
  • परम पुरुषार्थ: जीव का परमप्राप्य—ब्रह्मज्ञान और मोक्ष—का प्रतिपादन।
  • तीन प्रमुख मार्ग: अद्वैत (अद्वैत वेदांत), विशिष्टाद्वैत (रामानुज), द्वैत (मध्व) — जिनके प्रवर्तक आदि शंकराचार्य, रामानुजाचार्य और मध्वाचार्य हैं।

लाभ
इस दर्शन का अध्ययन आत्मसाक्षात्कार, ब्रह्मज्ञान और मोक्षमार्ग पर मार्गदर्शन करता है। वेदांत की शिक्षाएँ जीवन के परमसत्य की अनुभूति कराकर हमारे अस्तित्व को सार्थक और उद्देश्यपूर्ण बनाती हैं।

निष्कर्ष:

पुराण और छह शास्त्र भारतीय ज्ञान की अमूल्य निधियाँ हैं। ये हमें न केवल धर्म और आध्यात्मिकता का मार्ग दिखाते हैं, बल्कि तर्क, विचार और जीवन के व्यवहारिक पहलुओं की भी गहराई से समझ देते हैं। इन ग्रंथों का अध्ययन हमें अपने संस्कारों से जोड़ता है और जीवन को संतुलित, उद्देश्यपूर्ण और सार्थक बनाने की दिशा में प्रेरित करता है। यह संक्षिप्त परिचय निश्चय ही आपको इस समृद्ध ज्ञान परंपरा को और गहराई से जानने की प्रेरणा देगा।

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